Mahadev Ka Gorakhpur Review: चुनाव से ठीक पहले रवि किशन का हर हर महादेव, जानिए कहां चूक गया गोरखपुर कनेक्शन
Movie Review : महादेव का गोरखपुर
कलाकार. : रवि किशन , प्रमोद पाठक ,
लाल , कियान , सुशील सिंह और इंडी थंपी आदि
लेखक : साईं नारायण
निर्देशक : राजेश मोहनन
निर्माता प्रितेश शाह , सलिल शंकरन : और रवि किशन
रिलीज। : 29 मार्च 2024
रेटिंग : 2/5
भारत ऋषि मुनियों का देश है। माना जाता है कि संत परंपरा की वजह से ही भारतीय संस्कृति अपना अस्तित्व बनाए हुए है। हमारी संस्कृति को सदियों से विदेशी ताकतें मिटाने का षड्यंत्र रचती रची हैं। मंदिरों को तोड़ा गया लेकिन भारत फिर भी अखंड रहा। अवतारों की इस धरती के दो कालखंडों को जोड़ती एक कहानी है अभिनेता रवि किशन की फिल्म ‘महादेव का गोरखपुर’। शिव के प्राणलिंग और उनके सर्वश्रेष्ठ सेनापति वीरभद्र की बहादुरी पर आधारित इस फिल्म के माध्यम से यह बताने की कोशिश की गई है कि भारत वर्ष सदियों से विश्व गुरु रहा है और आगे भी रहेगा।
Mahadev Ka Gorakhpur Review in Hindi Ravi Kishan Pramod Pathak Lal Kiaan Sushil Singh movie
फिल्म ‘महादेव का गोरखपुर’ की कहानी की शुरुआत साल 1525 से होती है। आयुध पूजा के दिन विदेशी आक्रमणकारी शिव मंदिर पर हमला करके कई शिव भक्तों को मार देते हैं। इससे पहले कि विदेशी आक्रमणकारी शिवलिंग को क्षति पहुंचाएं, आचार्य शिवलिंग समेत जल समाधि लेते हैं। फिल्म की आगे की कहानी पुनर्जन्म से जुड़ी हैं। आचार्य और वीरभद्र का पुनर्जन्म होता है और ये अपने पिछले जन्म के अधूरे काम को पूरा करते हैं। इस फिल्म के माध्यम से यह बताने की कोशिश की गई है जब-जब शिवलिंग को क्षति पहुंचाने की कोशिश की गई, भगवान शिव के रूद्र अंश भारत की भूमि पर अवतरित हुए और विदेशी आक्रमणकारी से हमेशा शिवलिंग की रक्षा की।
इस फिल्म की कहानी का आधार भले ही काल्पनिक है, लेकिन इस फिल्म के माध्यम से यह बताने की कोशिश की गई है कि आखिर भगवान शिव ने पृथ्वी पर आने के लिए भारत के ही तिकोने स्थल को ही क्यों चुना? इसके पीछे धार्मिक और वैज्ञानिक कारण क्या रहे? लेकिन फिल्म की पटकथा बीच बीच में ऐसी बिखरी हुई है कि अगर आप का फिल्म देखने में थोड़ा सा ध्यान भटका तो समझ नहीं पाएंगे कि पिछली घटना का आगे वाली घटना के साथ क्या संबंध रहा है। फिल्म में कहानी कहने का अंदाज जितना सहज होता है उतनी ही सहजता से दर्शक उससे जुड़ पाते हैं। फिल्म की पटकथा कुछ कुछ ‘एनिमल’ के अंदाज में आगे बढ़ाने की कोशिश होती है लेकिन अध्यात्म को आधुनिकता से जोड़कर जितने कौशल से फिल्म ‘कार्तिकेय 2’ बनी थी, वैसी काबिलियत दिखाने में फिल्म ‘महादेव का गोरखपुर’ के लेखक साईं नारायण चूक गए हैं।
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फिल्म ‘महादेव का गोरखपुर’ में रवि किशन की दोहरी भूमिकाएं हैं। वीरभद्र और डीआईजी पंकज पांडे के किरदार में उनका अभिनय अच्छा है। मुर्तजा अब्बासी की भूमिका में प्रमोद पाठक भी अपनी अलग छाप छोड़ते हैं। लाल, कियान, सुशील सिंह, इंडी थंपी और फिल्म के बाकी कलाकारों ने भी अपनी भूमिकाओं से न्याय करने की पूरी कोशिश की है। भोजपुरी सिनेमा में यह एक नया प्रयोग है। रवि किशन ने इस फिल्म के माध्यम से बहुत ही साहसिक कदम उठाया है और इस फिल्म को हिंदी और भोजपुरी के साथ तमिल, तेलुगु और कन्नड़ भाषा में भी रिलीज किया गया है लेकिन फिल्म का जैसा प्रचार और प्रसार होना चाहिए था, वैसा हुआ नहीं है।
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कमाल की सिनेमाटोग्राफी वाली फिल्म ‘महादेव का गोरखपुर’ में अरविंद सिंह ने फिल्म के एक एक फ्रेम को बहुत ही खूबसुरती से सजाया है। अजीश अशोकन का संपादन, अगम अग्रवाल और रंजिम राज का संगीत बेहतर है। हालांकि, फिल्म का बैकग्राउंड म्यूजिक वैसा ही जैसा आजकल की साउथ की तमाम फिल्मों में सुनने को मिलता है। इस फिल्म के निर्देशक राजेश मोहनन इससे पहले साउथ की कई फिल्में निर्देशित कर चुके हैं। फिल्म का फ्लेवर भी उन्होंने साउथ स्टाइल वाला ही रखा हैं।