Hacker

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Chapter – 2

रैगिंग-

आठ बज चुके थे और हॉस्टल में चहल पहल बढ़ चुकी थी। कुछ लड़के अपने अपने कमरों से पेस्ट और ब्रश हाथ में पकड़े बाथरूम की तरफ बढ़ रहे थे। विवेक और जगदीश भी बेसिन के पास पहुंचे और अगल बगल खड़े होकर ब्रश करने लगे। विवेक ने ध्यान दिया कि अब जगदीश ने एक मोटे फ्रेम का चश्मा लगा लिया था, उसके पतले पिचके से चेहरे पर इतने मोटे फ्रेम का चश्मा थोड़ा अजीब लग रहा था लेकिन विवेक कुछ बोला नहीं, बस मुस्कुराकर रह गया। जगदीश को जाने उसे ज़्यादा समय नहीं हुआ था और वह नहीं चाहता था कि उसकी किसी बात का जगदीश को बुरा लगे। ब्रश करके विवेक और जगदीश जब रूम में लौट रहे थे तो विवेक ने पूछा “अच्छा एक बात बताना जगदीश, तुमने फर्स्ट ईयर की हॉस्टल और कॉलेज फीस दे दी?”

जगदीश ने जवाब दिया “नहीं यार, मेरी तो पूरी फीस पेंडिंग में है लेकिन मुझे उसकी फिक्र नहीं है। स्कॉलरशिप का फॉर्म भर दिया हूँ तो सरकार की तरफ से पैसा आ ही जायेगा।”

यह सुनकर विवेक भी उत्सुकता से बोला “अरे यार मुझे भी बता दो कहाँ मिलता है स्कॉलरशिप का फॉर्म। मैं भी भर देता हूँ।”

“मिलता तो एकाउंट्स ऑफिस में है लेकिन तुम कैसे भरोगे? तुम्हारे पापा या मम्मी प्राइवेट सेक्टर में जॉब करते हैं क्या?”

“नहीं मम्मी तो हाउसवाइफ हैं और पापा बैंक में सीनियर अकाउंटेंट हैं। प्राइवेट जॉब वाला तो कोई नहीं है घर में।”

इस जवाब के बाद जगदीश दुनिया भर का अफसोस अपने चेहरे पर लाता हुआ बोला “ओहो! तब तो नहीं भर सकोगे भाई। अब जैसे हमारे घर में पापा का खेती बाड़ी का काम है तो हम उनके आय प्रमाण पत्र का फोटोकॉपी जमा करवा दिए हैं। वैसे लड़के फर्जी भी बनवा लेते हैं लेकिन पकड़े जाने का बहुत रिस्क रहता है इसलिए कोई चांस लेता नहीं है। वैसे फीस जमा करने में क्या दिक्कत है तुमको? पापा बैंक में हैं तो लोन वगैरह लेना भी आसान होना चाहिए तुम्हारे लिए तो।”

अब विवेक भला जगदीश को क्या बताता कि उसके पापा फिलहाल उसकी शक्ल भी नहीं देखना चाहते थे। उसने कहा “अरे अभी घर की आर्थिक स्थिति थोड़ा ठीक नहीं है और मैं पापा पर बेमतलब का प्रेशर नहीं देना चाहता।”

“अरे तो एकाउंट्स ऑफिस में जाकर बात कर आओ ना। वो तुम्हारी फीस को पेंडिंग लिस्ट में डाल देंगे।”

“अच्छा? ऐसा हो सकता है क्या?”

“हां, हो तो सकता है। बाकी बात एकाउंट्स आफिस वाले ही बता पाएंगे।”

“लेकिन ऑफिस तो अब मंडे को ही खुलेगा ना?”

“अरे नहीं भाई, आज सैटरडे है मतलब कॉलेज बंद रहता है लेकिन एडमिनिस्ट्रेशन का काम तो चालू ही रहता है। हां संडे के दिन पूरी तरह बंद रहता है, अब तुम देर ना करो, तुरंत नहा धोकर एकाउंट्स ऑफिस पहुंचो।”

“लेकिन मेरे पास तो अभी बाल्टी भी नहीं है, आसपास की किसी दुकान से लेनी पड़ेगी। यहाँ के बाथरूम में शॉवर तो होगा ना?”

जगदीश ताना मारते हुए बोला “साहब ये हॉस्टल है, फाइव स्टार होटल नहीं जो हर तरह की सुविधा दी जाएगी। और वैसे भी, सिर्फ बाल्टी ही तो नहीं है ना? तौलिया और साबुन तो होगा ही तुम्हारे पास? आज हमारी बाल्टी ले जाओ। शाम को जाकर बाल्टी और बाकी ज़रूरत का सामान ले आना।”

इसके बाद विवेक तुरंत नहाने के लिए बाथरूम की तरफ भागा, उसने देखा कि उसके फ्लोर पर अब तक नहाने वालों की लाइन लग चुकी थी। जो अंदर गाना गा गाकर नहा रहे थे उन पर बाहर खड़े लोग गुस्से में चिल्ला रहे थे लेकिन नहाने वाले अपनी धुन में मगन और जोर जोर से गाकर बाहर खड़े लोगों को चिढ़ाने लगते। विवेक से इंतज़ार नहीं हुआ तो वह ऊपर वाले फ्लोर पर चढ़ गया। वहाँ भीड़ ना देखकर उसने राहत की सांस ली और नहाने घुस गया। नहा धोकर नई शर्ट पैंट पहनकर विवेक एकाउंट्स ऑफिस की तरफ बढ़ गया जो हॉस्टल से कुछ ही कदम दूर था। अब वह बाहर निकल ही आया था तो कैंपस को भी जी भरकर निहार रहा था। सुबह के वक्त हल्के हल्के कोहरे में कैंपस उतनी अच्छी तरह से दिख नहीं रहा था, अब पूरी तरह धूप निकल आयी थी। कैंपस काफी अंदर तक फैला था, एक बड़ी सी लाइब्रेरी थी जिसके ठीक सामने कैंटीन थी। कैंटीन के पास तमाम लड़के लड़कियां खड़े हंसते खिलखिलाते हुए बातें कर रहे थे। लाइब्रेरी से ही थोड़ा आगे था एकाउंट्स ऑफिस। विवेक office के अंदर पहुंचा, ठीक सामने काउंटर था जहां ज़्यादा भीड़ नहीं थी। जो भी इक्का दुक्का लड़के खड़े थे वे भी फीस जमा करने या फीस माफी के लिए ही खड़े हुए थे। एक काफी गंभीर सा आदमी कंप्यूटर पर आँखें गड़ाए बैठा हुआ था।

विवेक उसके पास पहुंचा और बोला “एक्सक्यूज़ मी सर! मेरा नाम विवेक जोशी है, मुझे फीस के सिलसिले में आपसे कुछ बात करनी है।”

“पेंडिंग लिस्ट में डाल दूं?” उस आदमी ने बिना विवेक की तरफ देखे कहा।

विवेक को अंदर से बड़ी खुशी हुई कि उसे ज़्यादा कुछ कहने की मशक्कत ही नहीं करनी पड़ी, वह बोला “जी सर, मैं इसीलिए आपसे बात…..”

“लेकिन यह जान लो कि पेंडिंग लिस्ट में आना कोई बहुत अच्छी बात नहीं है।” वह आदमी कंप्यूटर स्क्रीन से नज़रें हटाकर और विवेक को देखते हुए कहा “फीस पेंडिंग का मतलब यह होता है कि आपको तीन महीने का रिलैक्सेशन मिल जायेगा लेकिन अगर उसके बाद आपने अगर फीस जमा करने में तीन महीने एक दिन का भी समय लगाया तो सीधे दस हज़ार रुपये का फाइन भी लगेगा।”

यह सुनकर विवेक की धड़कनें बढ़ गयीं, पूरी फीस के बाद भी दस हज़ार की चपत बहुत ज़्यादा हो जाती। उसने दो मिनट तक सोचा और बोला “ठीक है सर! मुझे आप फीस पेंडिंग वाली लिस्ट में डाल दीजिए, मैं तीन महीने के अंदर ही पैसा जमा करवा दूंगा।”

वह व्यक्ति विवेक को एक फॉर्म देते हुए बोला “यह फीस जमा करने की डेट को आगे बढ़ाने के लिए एप्लीकेशन फॉर्म है, इसे तुरंत भरकर मुझे दे दो।”

विवेक ने वह फॉर्म भरकर जमा करवा दिया लेकिन वह अब भी नहीं समझ पा रहा था कि पैसे का इंतज़ाम कैसे करेगा। उसके पिता से अभी उसके संबंध ऐसे नहीं थे कि वह सीधे फीस की ही बात कर ले, उसके घर छोड़ने के बाद से अभी तक उनका कोई फोन नहीं आया था तो जाहिर सी बात थी कि वे अभी तक विवेक से नाराज़ थे। पहला ख्याल जो विवेक के मन में आया वह यह था कि कोई पार्टटाइम जॉब भी ढूंढने की कोशिश की जाए लेकिन शायद ऐसी कोई पॉर्ट टाइम जॉब उसे ना मिल पाती जिससे साल भर की फीस का इंतज़ाम हो पाता। इसी उधेड़बुन में वह वापिस अपने हॉस्टल की तरफ बढ़ा चला आ रहा था कि एकदम से सामने कुछ देखकर उसके कदम रुक गए। उसके हॉस्टल के सामने दो लड़के खड़े थे और वे बाकी उन्होंने बाकी सभी फर्स्ट ईयर वालों को हॉस्टल के नीचे ही जमा कर लिया था। सभी लड़के उन दो लड़कों के सामने हाथ पीछे की तरफ बांधकर और नज़रें नीची करके खड़े हुए थे। विवेक को यह समझने में समय नहीं लगा कि रैगिंग शुरू हो चुकी है। उसने उन दो लड़कों की नज़र बचाकर चुपचाप भीड़ में घुसने की कोशिश की लेकिन तब तक उन दोनों में से एक सीनियर चिल्लाया “ऐ हीरो! किधर से आ रहा है? एक महीना हुआ नहीं कॉलेज में आये और अभी से आशिकी शुरू कर दी? चल यहाँ आ, हमारे पास।”

बाकी लड़के भी विवेक को देखने लगे, विवेक धीरे धीरे चलता हुआ सीनियर्स के पास पहुंचा। उनमें से एक की त्वचा एकदम दूध की तरह उजली थी और उसके सिर पर एक भी बाल नहीं था। दूसरे की हल्की दाढ़ी थी, सांवला रंग और वह साढ़े छह फुट का पहलवान था।

वह पहलवान विवेक से बोला “मेरा नाम है अतुल और अपने टकलू दोस्त का नाम है रौनक। यह तो हर कॉलेज की प्रथा है कि सीनियर्स को जूनियर ग्रीट करते हैं। चल हमें ग्रीट कर।”

विवेक नज़रें नीची करके बोला “गुडमार्निंग अतुल सर, गुडमार्निंग रौनक सर।”

उस पहलवान अतुल ने विवेक का कंधा थपथपाते हुए कहा “वाह, ये होते हैं मैनर्स! तुम लोगों को भी कितनी बार समझाया है कि अगर दो सीनियर्स जा रहे हैं तो दोनों सीनियर्स को अलग अलग गुडमॉर्निंग ग्रीट करना लेकिन तुम्हारे भेजे में घुसती ही नहीं है बात। हां तूने अपना नाम तक बताया ही नहीं।”

“जी मेरा नाम विवेक है।” विवेक अपना कंधा सहलाकर बोला, हालांकि वह खुद भी कसरत करता था लेकिन उस लंबे चौड़े अतुल के भीतर कुछ ज़्यादा ही जान थी।

रौनक अपनी ठोढ़ी पर हाथ फेरता हुआ बोला “हम्म, तो विवेक, तुम अभी कहाँ से आये?”

“जी एकाउंट्स ऑफिस गया था।”

रौनक और अतुल एक दूसरे की तरफ देखकर मुस्कुराये और वापिस विवेक की ओर देखकर बोले “सही सही बता, गर्लफ्रैंड से मिलने गया था ना?”

विवेक हल्का सा झेंपते हुए बोला “सर..गर्लफ्रेंड तो है ही नहीं।”

रौनक ने और थोड़ा फ्रेंडली अंदाज़ में पूछा “अरे शर्मा मत, अगर है तो बता दे। इसमें शर्माने वाली क्या बात है? हां अगर नहीं है तो वो ज़रूर शर्माने वाली बात है।”

इसके बाद रौनक और अतुल दोनों जोरों से खिलखिलाकर हंसने लगे।

विवेक थोड़ा और खुलकर बोला “अरे मैं तो आज ही आया हूँ सर, अभी कहाँ से बन जाएगी गर्लफ्रैंड?”

अतुल थोड़ा हैरानी से बोला “आएं! आज ही आया है? तू भी थर्ड राउंड की काउन्सलिंग पूरी करके आया है क्या?”

“जी” विवेक टालने के लिए बोला लेकिन वे दोनों विवेक को इतनी जल्दी छोड़ने के मूड में नहीं लग रहे थे।

रौनक ने पूछा “और बताओ विवेक, कहाँ से हो?”

“जी आगरा से हूँ सर।” विवेक बोला।

“हम्म, वैसे यहाँ गोरखपुर से कितने लोग हैं?” अतुल ने बाकी लड़कों की तरफ देखकर पूछा।

काफी सारे लड़कों ने हाथ उठा दिया। विवेक ने ध्यान दिया कि भीड़ में खड़े जगदीश ने भी फटाक से हाथ उठा दिया था।

रौनक उनको देखकर बोला “देखो गोरखपुर से मेरा और अतुल का खास लगाव है क्योंकि हम दोनों की ही गर्लफ्रेंड्स गोरखपुर से हैं इसलिए गोरखपुरवासियों को छोड़कर बाकी सभी लोग एक घंटे के लिए मुर्गा बन जाओ।”

बाकी लड़के एक दूसरे का मुंह ताक रहे थे। अतुल आगे आकर बोला “अबे एक दूसरे का मुंह क्या देख रहे हो? आज तुम्हारी क्लास नहीं है ना इसलिए हम तुम्हारी क्लास लेने आये हैं। चलो फटाफट मुर्गा बनो।”

कोई और चारा ना देखकर बाकी सभी लड़के घुटनों के बल झुककर मुर्गा बनने जा ही रहे थे कि तभी एक आवाज़ आयी “ये सब क्या हो रहा है बे?”

बाकी लड़कों के साथ साथ अतुल और विवेक ने भी मुड़कर देखा। एक पतला दुबला लड़का अपने साथ चार हट्टे कट्टे लड़कों को लेकर आ रहा था। वह लड़का जगदीश से थोड़ा ज़्यादा स्वस्थ था लेकिन फिर भी काफी दुबला था। वह एकदम अतुल और रौनक के सामने सीना तानकर खड़ा हो गया और बोला “हां भई, क्या करवा रहे हो?”

उनके पास ही खड़े विवेक ने ध्यान दिया कि उस लड़के के आने के बाद से अतुल और रौनक के चेहरे का रंग ही उड़ गया था।

रौनक बड़े ही आदर भाव के साथ बोला “अरे अंकुर भाई! आपने बताया ही नहीं कि आप आने वाले हैं वरना कुछ कुर्सी वगैरह का ही बंदोबस्त कर देते।”

अंकुर हाथ हिलाकर बोला “अरे उन सब चीजों की कोई जरूरत नहीं है, मुझे बस ये बताओ कि मेरा पैसा कब दे रहे हो?”

अतुल कांपता हुआ बोला “दे देंगे भाई, थोड़ा वक्त तो दीजिये।”

अंकुर के चेहरे पर मक्कारी भरी मुस्कुराहट थी, वह बोला “मतलब फर्स्ट ईयर वालों की रैगिंग लेने का टाइम है तुम दोनों के पास लेकिन थोड़े से पैसे का जुगाड़ नहीं कर पा रहे। चलो अभी इन्हीं फर्स्ट ईयर वालों के सामने तुम्हारी इज्जत का फालूदा करता हूँ।”

फिर अंकुर लड़कों के झुंड की तरफ मुड़ा और बोला “सुनो भाई लोग! हर इंजीनियरिंग कॉलेज में जाने वाला वह एक गेम ज़रूर जानता है जिसका नाम है काउंटरस्ट्राइक। यह मल्टीप्लेयर वीडियो गेम है जिसमें दो गुट एक दूसरे को मारने की कोशिश करते हैं। अब इन लड़कों ने मुझसे दस हज़ार की शर्त लगाई थी कि ये उस गेम में मुझे हराएंगे लेकिन बिचारे खुद बहुत बुरी तरह से हारे तो क्या कहना है आपका मित्रों? शर्त के हिसाब से पैसे देने चाहिए या नहीं देने चाहिए?”

सभी लड़के बड़ी खुशी से एक साथ चिल्लाकर बोले “देने चाहिये!” सबसे ज़्यादा मजा उन्हें इस बात का आ रहा था कि जो दो सीनियर बहुत चिल्ला चिल्लाकर उनकी रैगिंग ले रहे थे, वे अब बड़ी ही लाचारी से खड़े थे। इन सब घटनाओं के बीच में विवेक बड़ा ही कंफ्यूज हो चुका था, उसे यही समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर कौन है यह अंकुर जिससे दो थर्ड ईयर के लड़के इतना खौफ खा रहे हैं।

अंकुर बोला “देखो भाई समय पर पैसा नहीं देने का हर्जाना तो चुकाना ही पड़ेगा, अगर कल तक मेरे पैसे नहीं मिलते हैं तो फिर इन दोनों भाइयों के लैपटॉप पर कब्जा जमा लिया जाएगा।”

इस वक्त फर्स्ट ईयर के बाकी लड़के जोरों शोरों से हूटिंग कर रहे थे, वहीं अतुल और रौनक बिल्कुल हैरान परेशान खड़े थे। अंकुर रौनक के कंधे पर हाथ रखकर बोला “तो कल तक पैसे का इंतज़ाम कर लेना, वरना अपना लैपटॉप भूल जाना।”

इतना कहकर चार पाँच हट्टे कट्टे लोगों से घिरा अंकुर आगे बढ़ गया लेकिन जाते जाते पीछे खड़े अतुल और रौनक को भीगी बिल्ली बना गया। अब इतनी किरकिरी होने के बाद फर्स्ट ईयर के लड़कों के खड़े रहने का भी कोई मतलब नहीं था, सब छंटते चले गए। अपने रूम में बैठे विवेक और जगदीश उसी घटना की चर्चा करने में लगे थे।

विवेक बोला “अरे एक बात बता भाई, ये अंकुर सर फोर्थ ईयर के हैं क्या?”

जगदीश हल्की सी आंखें भींचकर बोला “अंकुर सर? अरे वो फर्स्ट ईयर में है। तुम कंप्यूटर साइंस ब्रांच में हो ना, वो भी कंप्यूटर साइंस लिया है।”

विवेक अपने बिस्तर पर ऐसे कूदा जैसे उसे 440 वोल्ट का झटका लगा हो, “क्या? अंकुर फर्स्ट ईयर का है? एक फर्स्ट ईयर के लड़के से इतना खौफ खा रहे हैं थे थर्ड ईयर के लड़के।”

“अरे बड़ा भौकाल जमाया हुआ है अंकुर ने पहले दिन से। अपने लैपटॉप पर बैठा बैठा ऐसे ऐसे काम कर देता है कि कोई सुन ले तो माने भी नहीं। किसी की पर्सनल चैट या प्राइवेट फोटोज सोशल मीडिया पर पब्लिक कर देना, एकाउंट हैक कर लेना, यह सब तो उसके लिए बाएं हाथ का खेल है इसलिए सब पर दबंगई करता है।”

विवेक ने मन ही मन सोचा “यह सब काम तो मैं बचपन से करता आ रहा हूँ।”

उसने वापिस जगदीश से पूछा “तो ये पैसे के लेन देन का क्या चक्कर था?”

“अरे सुने तो थे तुम, अरे ये लोग कौन खेल की बात कर रहे थे?” जगदीश माथे पर हथेली मारते हुए याद करने की कोशिश कर रहा था।

“काउंटरस्ट्राइक” विवेक ने तपाक से बोला।

“हां वही। अरे हमें तो यहां आकर पता लगा कि ई सब लैपटॉप पर खेले जाने वाला खेला पर ये लोग शर्त लगाते हैं। अतुल और रौनक को काउंटरस्ट्राइक का चैंपियन माना जाता था लेकिन अंकुर की टीम से इनकी टीम बहुत बुरा हारी। सीधे दस हज़ार की चपत लगी है, नहीं दिए तो लैपटॉप जाएगा इनका।”

“अरे काउंटर स्ट्राइक और पब जी जैसे गेम आजकल ई स्पोर्ट्स में बहुत पॉपुलर हैं। कई लोग इन्हीं खेलों में करियर बनाने निकल जाते हैं क्योंकि जीतने पर पैसा अच्छा मिलता है। स्कूल में मैं खुद बहुत खेलता था यह सब।”

जगदीश के चेहरे पर हैरत के भाव थे, वह सर पर हाथ रखकर बोला “अरी दादा! ई सब खेला का पैसा भी मिलता है? तभी हम सोचें कि इतना सब शर्त लगाकर काहे खेलते हैं लोग।”

विवेक थोड़ी देर के लिए अपने ख्यालों में खो गया, जगदीश उसकी तरफ देखकर बोला “अरे क्या हुआ? क्या सोचने लगे?”

“मैं ये सोच रहा हूँ कि मैं भी यह खेल ठीक ठाक खेल लेता हूँ। तो क्यों ना मैं भी शर्त लगाऊं?”

“अरे पगला गए हो का? तुम्हारे पास अभी फीस भरने का पैसा नहीं है, शर्त हार गए तो कहाँ से दोगे?”

“अरे यह सोचो कि अगर जीत गए तो कितना जीतेंगे।”

“देखो हम तुम्हें discourage नहीं करेंगे लेकिन अंकुर को कॉलेज का सबसे तगड़ा प्लेयर बोलते हैं। उससे जीतना लगभग नामुमकिन है और हारने के बाद तुमने देख ही लिया कि क्या होता है इसलिए हमारी बात मानो और यह ख्याल दिमाग से निकाल दो।”

इतना कहकर जगदीश तो रूम से बाहर आ गया लेकिन विवेक वहीं बैठा कुछ सोचता रहा।

शाम के 5 बजे कैंटीन में अतुल और रौनक अपना माथा पकड़े आमने सामने कुर्सी पर बैठे हुए थे।

रौनक बोला “यार ओवर कॉन्फिडेंस वाकई बड़ी बेकार चीज़ होती है। अंकुर के आने के बाद से जीना हराम हो गया है।”

अतुल चिढ़कर बोला “यह सब छोड़ और आज एटीएम से जाकर दस हजार रुपये निकाल लाते हैं और उससे पीछा छुड़ाते हैं वरना लैपटॉप गया ही समझो।”

“उसकी ज़रूरत नहीं पड़ेगी।” विवेक ने वहां आते हुए कहा।

“अरे विवेक तुम? आओ बैठो।” अतुल ने कहा।

विवेक ने पीछे से एक कुर्सी ली और उनके पास बैठकर बोला “आप लोग सिर्फ दस हजार नहीं देंगे बल्कि अपनी सेल्फ रेस्पेक्ट भी दे देंगे। पूरा कॉलेज क्या सोचेगा? एक फर्स्ट ईयर के लड़के से थर्ड ईयर के लड़के हार मान गए? हर कॉलेज की एक प्रथा है कि जूनियर को सीनियर की इज्जत करनी चाहिए लेकिन अंकुर ने जिस लहज़े में आपसे बात की उसमें दूर दूर तक रेस्पेक्ट का एक कतरा भी नहीं था।”

परेशान सा अतुल बोला “बात तो तुम्हारी सही है लेकिन अब हम करें क्या?”

“रीमैच! अंकुर से दोबारा मैच करिए।”

यह सुनकर रौनक हाथ जोड़कर बोला “माफ कर दो भाई, एक बार जो भुगत लिए वो भुगत लिए। अब तो लैपटॉप पर कोई गेम ही नहीं खेलूंगा।”

विवेक थोड़ा सा आगे झुककर बोला “अच्छा एक काम करते हैं। आप लोग मुझसे एक मैच करिए, अगर मैं जीता तो हम लोग अंकुर से कल rematch करेंगे वरना तो आप दस हजार दे ही रहे हैं।”

अतुल और रौनक ने एक दूसरे की तरफ देखा, वो दोनों बहुत ही बेहतरीन काउंटर स्ट्राइक खेलते थे। उन्हें एक साथ जब भी खेला, हमेशा जीते, सिर्फ अंकुर ही उन्हें हरा पाया था। अगर विवेक उन्हें हरा देता तक उम्मीद की किरण फिर भी बाकी थी, साथ में विवेक की बातों ने भी उन पर असर किया था। उन्हें वाकई में लगने लगा था कि अंकुर से हार मानने का मतलब है सीनियर्स ने एक जूनियर के आगे सिर झुका किया और उनका ईगो उन्हें ऐसा करने से रोक रहा था।

रौनक मुस्कुराकर बोला “ठीक है विवेक। तू हमारे साथ हमारे हॉस्टल चल। वहां हम तेरी गेमिंग स्किल्स देखेंगे।”

विवेक बोला “लेकिन मेरे पास लैपटाप नहीं है।”

अतुल उसके कंधे पर हाथ रखकर बोला “चिंता मत कर। उसका जुगाड़ हम कर देंगे।”

कुछ ही देर में विवेक कुछ तीन सीनियर छात्रों के साथ टीम बनाकर अतुल और विवेक की टीम के साथ काउंटर स्ट्राइक खेल रहा था। सभी लोग थर्ड ईयर बॉयज होस्टल के बाहर मैदान में लैपटॉप में आंखें गड़ाए बैठे हुए थे। वे लोग बुरी तरह तब चौंके जब उसने अंकुर से भी कम समय में दोनों लोगों को हरा दिया।

रौनक अतुल से बोला “अरे यार! ये तो उस अंकुर से भी ज़्यादा खतरनाक खेलता है, कुछ भी कहो लेकिन इस बार फर्स्ट ईयर का बैच बहुत खतरनाक आया है। अब हमें पूरा यकीन है कि हमारी खोई हुई सेल्फ रेस्पेक्ट विवेक की वजह से वापिस आ सकती है।”

विवेक ने खुश होकर पूछा “इसका मतलब आप लोग अंकुर के खिलाफ मुझे अपनी टीम में लेंगे ना?”

अतुल ने जवाब दिया “अरे बिल्कुल भाई! एक काम कर रौनक, अंकुर के पास खबर भिजवा कि हमें दोबारा एक मैच करना है।”

रौनक थोड़ा सा सशंकित होकर बोला “लेकिन भाई इस बार हारे तो दस की जगह बीस जाएंगे।”

लेकिन अतुल तो जैसे कुछ सुनने के मूड में ही नहीं था, वह बोला “कोई बात नहीं भाई! दस की जगह बीस दे देंगे लेकिन ज़रा ये सोच की अगर जीते तो उस अंकुर की कितनी किरकिरी हो जाएगी। वैसे भी विवेक का खेल देखकर मुझे कॉन्फिडेंस आ गया है।”

अंकुर को तो खबर भी नहीं थी कि यहाँ उसका एक तगड़ा opponent तैयार हो रहा था।

 

 

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