एक रहस्यमई युद्ध – 42

एक रहस्यमई युद्ध

Chapter – 42: राज महल में तिलिस्मी युद्ध

अमर, दरवाजा बंद करके, खिड़की पर आता है ,और वहां से नीचे उतरने लगता है ,और फिर ,उसके पीछे- पीछे विजय और दरोगा भी उतर जाते हैं,

 

 

 

 

 

विजय,” हम उस कमरे में सुरक्षित थे,यहां हम खुले में उन तांत्रिकों के हत्थे चढ़ सकते हैं,”

 

 

 

 

 

अमर,” जब तक उन्हें, इस बात का पता लगेगा ,हम छत में पहुंचकर , अपने तिलिस्मी पत्ते पर , बैठ चुके होंगे ,चलो अब,”, और तीनों तेजी से, छत की तरफ भाग जाते हैं ,दूसरे रास्ते से,

 

 

 

 

 

और कुछ ही सेकंड में वे, इस वक्त महल की छत में आ खड़े हुए थे ,और तेजी से ,वहां उड़ रहे ,अपने पत्ते के ऊपर जंप करके बैठ जाते हैं,

 

 

 

 

 

 

 

अमर ,”तिलिस्मी पत्ते सिंबा, वन की तरफ चलो जल्दी,”

 

 

 

 

 

 

 

तिलिस्मी पत्ता ,तेजी से उड़ता हुआ ,महल से नीचे उतर जाता है,

 

 

 

 

 

विजय,” अरे यह क्या हुआ, यह आकाश में ना जाकर, जाकर महल से नीचे उतर रहा है,”

 

 

 

 

 

 

 

,और अब तीनों की साँसे ,उनके हलक में अटक गई थी, क्योंकि, क्योंकि ,उनके सामने तांत्रिक चित्र देव, नूरा, सुरा ,बेहद खतरनाक भाव लिए खड़े थे ,और उनके पीछे हवलदार गायब सिंह, बेहद घबराए हुआ लग रहा था,

 

 

 

 

 

 

 

अमर,” तिलिस्मी पत्ते, क्या कर रहे हो ,चलो यहां से, तुम हमें मुसीबत में क्यों डाल रहे हो, मेरा आदेश क्यों नहीं मान रहे हो, जल्दी चलो यहां से,”, और लगभग चीख और चिल्ला पड़ता है,

 

 

 

 

 

 

 

तांत्रिक चित्र देवा ,बड़ी जोर से हंसता है ,और,” बच्चे अब यह तुम्हारी बात नहीं मानेगा ,क्योंकि यह तुम्हारा तिलिस्मी पत्ता नहीं है, वह तो अभी भी छत पर ही उड़ रहा होगा,”

 

 

 

 

 

 

 

 

 

तांत्रिक नूरा,” हमने महल की छत के ऊपर ,तुम्हारे इस पत्ते को लहराते देख लिया था ,और फिर हमने अपने तंत्र शक्ति से, छत पर तुम्हें नजरों का धोखा दे दिया ,और हमारे बनाए इस जादुई पत्ते को, तुमने अपना तिलस्मी पत्ता समझ लिया,”

 

 

 

 

 

सुरा ,”और अब तुम तीनों ,हमारे इस जादुई पत्ते पर बैठकर हमारे पास चले आए, अब हम बड़े आराम से ,तुमसे यह चोटी प्राप्त कर लेंगे,”‘

 

 

 

 

 

तांत्रिक चित्र देवा ,”लाओ बच्चे, राजकुमारी शिल्पा की चोटी हमारे हवाले कर दो, अब तुम इस पत्ते से बंध चुके हो, तुम हमारा कुछ नहीं कर सकते,”

 

 

 

 

 

और फिर ,सुरा आगे बढ़ता है, विजय के कंधे पर लटके बैग को खींच लेता हैं,और उसमें से राजकुमारी की चोटी निकाल लेता है,

 

 

 

 

 

सुरा ,”यह लीजिए गुरुदेव, मिल गई चोटी ,जिसके लिए इतना सब कुछ समय करना पड़ा,”

 

 

 

 

 

तांत्रिक चित्र देवा ,अगले ही पल अपनी जादुई शक्ति को वापस खींच लेता है, और वह नकली तिलिस्मी पत्ता, जिस पर अमर और उसके साथी बैठे थे ,चित्र देव के हाथ में समा जाता है ,और वे तीनों ज़मीन पर आ गिरते हैं,

 

 

 

 

 

 

 

सुरा ,”अपनी जान की खैर चाहते हो तो ,भाग जाओ यहां से ,वरना मैं अभी तुम तीनों की, गर्दन मरोड़ दूंगा,” और उन्हें क्रोध से देखता है,

 

 

 

 

 

तांत्रिक चित्र देवा ,”नहीं सुरा, रहने दो ,आज इनकी वजह से ही यह चोटी फिर से मेरे हाथ लगी है ,वरना वह बलवान तो इससे अपनी इच्छा पूरी कर लेता ,इन्हें जाने दो,”,

 

 

 

और फिर ,”जाओ छत पर तुम्हारा, तिलिस्मी पत्ता उड़ रहा होगा ,जिसे चुड़ैल ने तुम्हारे नाम से बांध दिया था, जाओ उस पर घूमने का आनंद लो,”

 

 

 

 

 

 

 

तांत्रिक नूरा ,”चलिए गुरुदेव ,अब हमें बड़े तांत्रिक हवन की तैयारी करनी है,”

 

 

 

 

 

तांत्रिक चित्र देवा ,”पर हमें अब कहीं जाने की आवश्यकता नहीं ,हम यहीं इसी महल में ,तांत्रिक हवन करेंगे, यहां हमें उपयोग की हर वस्तु आसानी से मिल जाएगी ,चलो मेरे साथ तहखाने में, जहां मैंने पहले भी चोटी हासिल करने के लिए ,तांत्रिका हवन किया था ,हम वही फिर से तांत्रिक हवन करेंगे,”

 

 

 

 

 

 

 

सूरा,” चलिए गुरुदेव” और फिर सभी तहखाने की तरफ बढ़ जाते हैं,

 

 

 

इनके जाने के बाद,

 

 

 

 

 

 

 

विजय ,”अब हम क्या करें, चोटी हमारे हाथ से निकल गई हैं, और मुझे नहीं लगता कि अब हम उसे प्राप्त कर सकते हैं,”

 

 

 

 

 

अमर,” यह सब मेरी ही गलती से हुआ, मुझे समझ जाना चाहिए था ,कि यह कुछ ना कुछ गड़बड़ अवश्य करेंगे,”

 

 

 

 

 

 

 

दरोगा सौरभ,” चलो कोई बात नहीं ,पर अभी भी हम चोटी हासिल करने के लिए ,इन से लड़ सकते हैं “और अपनी कमर में दबी रिवाल्वर निकाल लेता है,”

 

“अभी मैं उन तीनों को गोली मार देता हूं ,फिर चोटी वापस हमारे पास होगी,”

 

 

 

 

 

 

 

अमर ,”नहीं आप ऐसी गलती नहीं करेंगे ,तांत्रिक चित्र देवा ने भी ,हमें नहीं मारा है, शायद इसकी कोई वजह है,”

 

 

 

 

 

किधर ,यह तीनों परेशान हो चुके थे ,की जो चोटी इतनी मेहनत के बाद, इनके हाथ लगी थी, वह निकल चुकी है,

 

 

 

दूसरी तरफ,

 

 

 

 

 

जंगल का , जल कर राख हो चुका था ,और अब उस तरफ सिर्फ धुआं और कोयला ही नजर आ रहा था, जंगल की ज़मीन जलकर काली नजर आ रही थी ,कई छोटे -छोटे जीवों के शरीर भी ,इधर-उधर जले हुए नजर आ रहे थे,

 

 

 

 

 

 

 

सिंबा ,अपने सरोवर से बाहर आ गया था, और अपने वन की तबाही को देखकर, खून के आंसू रो रहा था”, और उसके इतनी जोर से, चिल्लाने चीखने की वजह से, वनदेवी उसके सामने प्रकट हो गई थी,

 

 

 

 

 

 

 

दैत्य सिंबा ,वनदेवी को देखकर ,उनके चरणों में गिर पड़ता है, और अपने वन की रक्षा के लिए, गिड़गिड़ाने लगता है,

 

 

 

 

 

 

 

वनदेवी ,”मैंने राजा नर वीर को, यह कुकृत्य करने से रोका था ,पर वह नहीं माना,”‘

 

 

 

 

 

 

 

दैत्य सिंबा,” हे वन देवी, मुझे अब उस राजा से, मेरे इस वन को भस्म करने का बदला लेना है, आप मुझे मेरे इस वन की सीमा रेखा से ,मुक्त कर दें,”

 

 

 

 

 

वनदेवी,” नहीं, मैं तुम्हें ऋषि मुनि के दिए गए श्राप से मुक्त नहीं कर सकती, मैं श्राप को नहीं बदल सकती,”

 

 

 

 

 

 

 

दैत्य सिंबा,”‘ ठीक है वनदेवी, आप ऐसा नहीं कर सकती हैं ,तो फिर मुझे सिर्फ एक दिन का समय दे दीजिए, इस वन से बाहर जाने का, मैं अपना बदला ले कर वापस आ जाऊंगा, राजा नरवीर ने ,अपना वचन भंग किया है, मैं उसे वचन भंग करने का दंड अवश्य दूंगा,”

 

 

 

 

 

 

 

 

 

वनदेवी ,कुछ सोचते हूवे ,और फिर, “ठीक है,मैं तुम्हें एक दिन का समय देती हूं ,पर इस एक दिन के समय में तुम्हारे इस वन की सीमा का ,आकार बढ़कर राजा के संपूर्ण साम्राज्य तक हो जाएगा ,

 

 

 

“,बस सिर्फ एक दिन के लिए, उसके बाद फिर से सीमा सिमटकर ,यह यहीं तक आ जाएगी, और हां अगर तुम इस एक दिन में राजा को नहीं मार पाए, अपने हाथों से तो, तुम्हें हमेशा के लिए ,अपनी इसी प्रतिमा में जाना होगा, चिर निंद्रा के लिए, बोलो क्या तुम्हें मंजूर है,”‘

 

 

 

 

 

 

 

दैत्य सिंबा,” हां ,मुझे मंजूर है, मेरे लिए एक दिन ही काफी है , आप देखना मैं अपनी इस, तबाही का कैसे बदला लेता हूं,”

 

 

 

“, और मैं आपका बहुत- कृतज्ञ हूं ,जो आपने मुझे एक दिन के लिए, मेरी इतनी बड़ी सहायता कर दी है, और मैं इसका भरपूर लाभ उठाऊँगा, आपकी जय हो वनदेवी,”

 

 

 

 

 

 

 

वनदेवी ,वहां से अंतर्धान हो गई थी,

 

 

 

 

 

इधर दूसरी तरफ,

 

 

 

 

 

सिंबा वन, की सीमा पर ,अपने पड़ाव डाल कर, आराम फरमा रहे ,राजा नरवीर के सैनिक ,एकदम से हैरान रह गए थे,

 

 

 

 

 

सैनिक ,”अरे, यह क्या हो रहा है ,सिंबा वन की सीमाएं हमारी तरफ ही बड़ी चली आ रही है ,ऐसा कैसे हो सकता है ,इसकी सीमाएं, अपनी जगह कैसे बदल सकती हैं, कोई जगह आगे, कैसे खिसक सकती है,”

 

 

 

 

 

 

 

दूसरा सैनिक ,”इसकी सूचना जल्दी से सेनापति और महाराज को देनी होगी,”, और फिर सभी सैनिक वहां, से दूर एक तरफ महाराज के शिविर में पहुंच जाते हैं,

 

 

 

 

 

 

 

राजा नरवीर ,”क्या हुआ सैनिक, तुम इतना घबराए हुए, क्यों हो,”

 

 

 

 

 

सैनिक ,”महाराज सिंबा ,वन की सीमाएं फैलती ही जा रही है, सीमा रेखा बढ़ते हुए हमारी ही तरफ आ रही है,”

 

 

 

 

 

 

 

सेनापति ,”क्या कहा सिंबा वन की सीमाएं आगे बढ़ रही हैं ,कहीं तुमने कोई नशा तो नहीं कर लिया है, सैनिक तुम होश में तो हो, क्या बोल रहे हो,”

 

 

 

 

 

सैनिक ,”नहीं सेनापति जी, मैं पूरी तरह होश में हूं ,आप भी बाहर चल कर देखिए, सीमाएं हमारी ही तरफ बड़ी चली आ रही हैं,”

 

 

 

 

 

राजा नरवीर ,”चलो सेनापति, अपनी आंखों से ,ही देख आते हैं ,कि इस सैनिक की बातों में, कितनी सच्चाई है”‘, और फिर ,दोनों तेजी से बाहर निकलकर, अपने घोड़ों में सवार हो जाते हैं, और जंगल की तरफ बढ़ते हैं,

 

 

 

 

 

,पर इन दोनों को जंगल तक, जाने की आवश्यकता ही नहीं पड़ी, इन्हें जंगल की सीमाएं, अपनी तरफ बढ़ती नजर आ चुकी थी, ऐसा लग रहा था अग्नि से जला हुआ जंगल ,इन्हें भी अपने में समेटने के लिए, आगे बढ़ रहा हो, धूल और राख का गुबार ,हवा में उड़ रहा था,

 

 

 

 

 

 

 

राजा नरवीर,” यह देखकर वह घबरा जाता है,” “सेनापति यह क्या हो रहा है, ऐसा कैसे हो सकता है, यह तो बिल्कुल असंभव है,”

 

 

 

 

 

सेनापति ,”मुझे लगता है महाराज जी ,आपने अपना वचन जो भंग किया है, यह उसी का दंड है, जंगल अपनी सीमाएं बढ़ाकर ,दैत्य सिंबा को, आप तक आने का रास्ता दे रहा है,”

 

 

 

 

 

राजा नरवीर,” बहुत ही घबरा गया था, और डरकर काँपने लगा था,”

 

 

 

 

 

सेनापति,” अब क्या करें”, और अपने माथे पर आ गए, पसीने को साफ करता है,

 

 

 

 

 

राजा नरवीर,” जल्दी से सभी को, वापस राज महल की तरफ प्रस्थान का आदेश दे दो, शायद यही बढ़ती हुई सीमाएं वहां तक ना आये,”

 

 

 

 

 

सेनापति,” ठीक है महाराज” और फिर कुछ समय में, सारी सेना व प्रजा को ,वापस राजमहल की तरफ भाग चलने का आदेश दे दिया था,

 

 

 

 

 

सेना और राज्य के निवासी ,जो वहां आए थे ,सब वापस राजमहल की तरफ लौट गए थे,

 

 

 

 

 

,पर इन सब को यह नहीं मालूम था, वनदेवी की शक्ति के कारण, सिंबा वन की सीमाओं का बढ़ना, तब तक जारी रहेगा, जब तक कि वह राजा के संपूर्ण साम्राज्य को, अपने आगोश में नहीं ले लेता,”

 

 

 

 

 

 

 

राजा नरवीर,घोड़े पर बैठकर, बहुत तेज रफ्तार से, अपने राजमहल की तरफ ,निकल गया था ,और उसके पीछे उसके पास वीर योद्धा भी,

 

 

 

 

 

दूसरी तरफ, इस वक्त,

 

 

 

 

 

अमर ,विजय और दरोगा सौरभ को , कुछ भी समझ नहीं आ रहा था की ,वे अब क्या करें,

 

 

 

 

 

अमर, कुछ सोचते हुए,” चलो, छत पर चलते हैं ,और तिलिस्मी पत्ते पर बैठकर, राजा नरवीर के पास ,इस बारे में जानकारी देते हैं कि ,उसके राज महल में ,उसकी राजकुमारी की चोटी है, और तांत्रिक चित्र देव ,तांत्रिक हवन करके, उसे अपने वश में करने वाला है,”

 

 

 

 

 

दरोगा सौरभ,” तुम ठीक कहते हो ,क्या पता, राजा अपनी सेना के साथ, यहां हमला कर दे, जससे इनका यह हवन नष्ट हो जाए ,और हमें मौका मिल जाए, चोटी को फिर से हासिल करने का,”

 

 

 

 

 

विजय,” तो चलो अब ज्यादा क्या सोचना है” ,और फिर तीनों बेहद तेज रफ्तार से, भागते हुए महल की सीढ़ियां चढ़ने लगते हैं ,और कुछ ही पल में, छत पर आ पहुंचे थे, और उन्हें अभी भी, अपना वह तिलिस्मी पत्ता पहले वाली जगह ही खड़ा मिल गया था,

 

 

 

 

 

,और अब वह तिलिस्मी पत्ता, राजा की सेना की तरफ प्रस्थान कर चुका था, पर उस पर बैठे, तीनों के चेहरे उतरे हुए थे,

 

 

 

 

 

,और तीनों के, वहां पहुंचने से पहले ही , इन्हें दूर से ही धूल भरी आंधी आकाश में उड़ती नजर आ गई थी, और यह समझ गए थे, की कोई विशाल सेना ,राज महल की तरफ ही वापस आ रही है ,और वह भी बहुत तेजी से,

 

 

 

 

 

अमर ,की नजर राजा नरवीर पर पड़ चुकी थी, जो अपने कुछ वीर योद्धाओं के साथ, तेजी से महल की तरफ बढ़ रहा था,

 

 

 

 

 

अमर ,तेजी से तिलिस्मी पत्ते को ,राजा के पास चलने का आदेश देता है, और फिर उनके सामने आप पहुंचता हैं,

 

 

 

 

 

राजा नरवीर, उन तीनों को, अपने सामने आया देख कर, एक बार तो घबरा जाता है, पर दूसरे ही पल ,अपने आप को संभाल लेता है,”

 

 

 

 

 

राजा नरवीर, चिल्लाते हुए ,”तुम्हारे पास राजकुमारी की चोटी है, लाओ मुझे दो, मुझे उसकी बेहद आवश्यकता है ,वरना दैत्य सिंबा, सब कुछ बर्बाद कर देगा, किसी को नहीं छोड़ेगा,देख रहे हो पीछे हमारी सेना कितनी तेज भागती हुई आ रही है,”

 

 

 

 

 

 

 

अमर,” पर हुआ क्या महाराज, ऐसे भाग कर, आने का क्या कारण है,”

 

 

 

 

 

 

 

राजा नरवीर,” यह सब तुम्हारी वजह से हुआ, अगर तुम मुझसे चोटी लेकर नहीं भागते तो ,अभी तक यह दैत्य सिंबा ,मेरा गुलाम बन गया होता ,”और फिर यह सिंबा, ऐसा कोई भी काम नहीं कर पाता ,तुम्हें पता है ,क्या हो रहा है, अब सिंबा वन की सीमाएं बढ़कर ,हमारी ही तरफ आ रही हैं,”

 

 

 

 

 

 

 

तीनों ,राजा की बात सुनकर हैरान रह गए थे ,और फिर अमर तिलिस्मी पत्ते को, अकाश ऊंचाई पर ले जाता है, और दूर तक देखने की कोशिश करता है ,तीनों को ही दूर राख का ढेर उड़ता हुआ नजर आ गया था ,और यह समझ गए थे कि, कुछ ना कुछ तो गड़बड़ है,

 

 

 

अमर ,फिर से राजा के पास लौट आता है,

 

 

 

 

 

अमर,” महाराज आप अपनी सारी सेना के साथ, इस तिलिस्मी पत्ते पर आ जाइए, मैं आप सब को, बहुत तेज रफ्तार से राज महल में ले जाऊंगा ,”

 

 

 

 

 

राजा और सेनापति ,उसकी तरफ देखते हैं,

 

 

 

 

 

राजा नरवीर ,”तुम मुझे वह राजकुमारी की चोटी दो, मैं उसे अभी भी साध सकता हूं, और उससे कोशिश करता हूं, इस दैत्य सिंबा को गुलाम बनाने की,”

 

 

 

 

 

 

 

विजय,” पर महाराज वह चोटी तो ,हमसे तांत्रिक चित्र देव ने छीन ली है ,और अब वह आपके राज महल के तहखाने में ,तंत्र साधना कर रहा है ,तांत्रिक नूरा और सूरा के साथ ,हम आपके पास इसलिए ही आए हैं, ताकि आपको जल्दी से वहां ले जाएं ,और आप उन्हें रोक सकें,”

 

 

 

 

 

 

 

राजा नरवीर,” क्या कह रहे हो ,तांत्रिक चित्र देवा, तांत्रिक हवन कर रहा है, इसका मतलब वह इस दैत्य को गुलाम बनाना चाहता है,”

 

 

 

 

 

अमर,” जल्दी कीजिए महाराज ,आप अपनी सेना के साथ ,हमारे इस पते पर आ जाइए, हम आपको राजमहल ले चलते हैं ,तभी हम उन तांत्रिकों को रोक पाएंगे,”

 

 

 

 

 

 

 

राजा नरवीर,” हां “तुम्हारी बात ठीक है ,और फिर वह अपने घोड़े से उतरकर, उस तिलिस्मी पत्ते पर चढ़ जाता है, और उसके पीछे -पीछे ,उसकी सभी सेना, जल्दी से उस पत्ते पर चढ़ने लग गई थी,

 

 

 

 

 

एक के बाद एक, सैकड़ों हजारों लोग, उस पर चढ़ते चले गए थे ,पर उस तिलिस्मी पत्ते पर, अभी भी जगह बाकी थी,

 

 

 

 

 

अमर,” देख लिया ,कितने लोग आ सकते हैं इस तिलिस्मी पत्ते पर, मुझे तो लगता है ,यह पूरी पृथ्वी के लोगों को भी ,अपने में समेट लेगा, और तब भी इस में बैठने की जगह खाली मिलेगी,”

 

 

 

 

 

सभी सैनिक ,उस तिलिस्मी पत्ते पर चढ़ चुके थे ,और अमर के आदेश देते ही ,वह पत्ता हवा की रफ्तार से भी तेज ,राजमहल की तरफ बढ़ जाता है,

 

 

 

 

 

राजा नरवीर ,”तुम लोगों से, तांत्रिक चित्र ने, राजकुमारी की चोटी को कैसे छीन लिया,”

 

 

 

 

 

अमर,” हम लोगों की आंखों में, उसने अपने तिलिस्म का जाल चढ़ा दिया था, और हम अपने तिलिस्मी पत्ते पर ना बैठ कर, उसके द्वारा बनाए गए, मायाजाल में बैठ गए थे, बस फिर क्या था ,हम मजबूर हो गए ,और उन्होंने हमारे हाथ से ,राजकुमारी शिल्पा की चोटी को छीन लिया,”

 

 

 

 

 

 

 

राजा नरवीर ,”जाने अब क्या होगा”,

 

 

 

 

 

दरोगा सौरभ ,”सब कुछ सही होगा महाराज ,आपकी इतनी बड़ी सेना ,जब एक साथ उन पर टूट पड़ेगी तो ,वह मजबूर हो जाएंगे ,और हम उनका हवन बीच में ही भंग कर देंगे,”

 

 

 

 

 

 

 

दूसरी तरफ,

 

 

 

 

 

काली शक्तियों के, सबसे ताकतवर तांत्रिक दैत्य सिंबा, अपने शैतान सेना को ,आवाहन करके ,सरोवर से बाहर बुला चुका था ,और बेहद खतरनाक नर पिशाच राक्षस मधुमक्खी के छत्ते की मधुमक्खीयों की तरह ,सरोवर से बाहर निकलने लगे थे,

 

 

 

 

 

 

 

दैत्य सिंबा, इस वक्त अपने विकराल रूप में आ गया था, उसकी आंखें प्रतिशोध की आग में जल रही थी,

 

 

 

 

 

दैत्य सिंबा ,”हमें वनदेवी ने एक मौका दिया है ,और हमें सिर्फ एक दिन में, राजा नरवीर के साम्राज्य का अंत करना है, जैसे उसने हमारे इस सिंबा वन का ,जलाकर अंत कर दिया,

 

 

 

“और अगर मैं इसे एक दिन में ,राजा नरवीर को ना मार सका तो, फिर से मुझे चिर निंद्रा में जाना होगा ,इसलिए मेरे महाबली शैतानों ,अपनी पूरी ताकत से ,इस साम्राज्य को नष्ट कर देना ,ताकि उस राजा नरवर को ,कहीं भी छुपने की जगह ना मिल सके,”

 

 

 

 

 

शैतानी ताकत ,युद्ध का जयघोष करने लगते हैं ,और दैत्य सिंबा की ,जय जयकार करने लगती हैं, जिसका शोर आकाश में चारों दिशाओं में फैल गया था,

 

 

 

 

 

,दैत्य सिंबा ,की आवाज से ,चारों दिशाओं से, निशाचर पक्षी जो, सिर्फ रात को ही निकलते हैं, दिन के उजाले में भी अब अकाश में उड़ने लगे थे, और उनकी तादाद से आकाश का रंग काला हो गया था,

 

 

 

 

 

दैत्य सिंबा,” चलो ,मेरी शैतान सेना, आज वर्षों बाद फिर से तबाही फैलाने का मौका मिला है, और इस दिन को हम ,यादगार बना देंगे आज राजा नरवीर की जिंदगी का आखरी दिन होना चाहिए ,उसके साम्राज्य का आखिरी दिन होना चाहिए,”

 

 

 

 

 

शैतान सेना, अपने दैत्य सिंबा की बात सुनकर ,बेहद उत्साहित हो उठती है ,और उनकी चीख-पुकार से, अकाश का भी सीना दहल जाता है,

 

 

 

 

 

 

 

और फिर दैत्य सिंबा आंखों में प्रतिशोध की ज्वाला लिए और चेहरे पर हिंसक भाव लिए , किसी खूंखार शेर की भांति, बेहद तेज रफ्तार से, अपने वन की बढ़ती सीमा के साथ भाग उठता है,

 

 

 

 

 

,उसके पीछे ,सभी शैतान सेना और आकाश में निशाचर पक्षी ,भागे चले जा रहे थे, और इन सबके ,एक साथ, भागने से, धरती पर भी कंपन पैदा होने लगी थी,

 

 

 

 

 

और इधर दूसरी तरफ,

 

 

 

 

 

तिलिस्मी पत्ता ,बेहद तेज रफ्तार से उड़ता हुआ, महल के मैदान में आ गया था ,और फिर सारी सेना वहां उतरने लगी थी,

 

 

 

 

 

अमर ,”चलिए महाराज ,अपनी सेना को तहखाने में आक्रमण करने का आदेश दे दीजिए ,वरना कभी भी हम पर मुसीबत आ सकती हैं,”

 

 

 

 

 

 

 

राजा नरवीर ,”हां” क्यों नहीं, पर उस से पहले, तुम तीनों को मैं बंधक बनाऊंगा” ,और सेनापति को आदेश देता है ,”इन तीनों को बंधक बना लो”,

 

 

 

 

 

 

 

सेनापति के, रक्षक सैनिक, उन तीनों को तलवारों की नोक पर ले लेते हैं ,और एक तरफ ले जाते हैं,

 

 

 

 

 

राजा नरवीर ,”सेनापति, तहखाने पर हमला बोल दो, और उन तीनों को पकड़ लो, और चोटी प्राप्त करके, उन तीनों को जिंदा जला दो,”‘

 

 

 

 

 

सेनापति ,”जो आज्ञा महाराज ,और,”‘चलो मेरे वीर सैनिकों “, फिर सेना की बहुत बड़ी टुकड़ी के साथ, तहखाने की तरफ भाग पड़ता है,

 

 

 

 

 

हवलदार गायब सिंह, इस वक्त तहखाने के द्वार पर खड़ा था, उसे वहां खड़ा किया गया था, यह बताने के लिए कि ,अगर कोई इस तरफ आए तो, उन्हें सूचित कर दें,

 

 

 

 

 

 

 

हवलदार को ,बेहद अधिक शोर सुनाई देने लगता है ,और वह समझ जाता है कि ,बहुत सारे लोग ,इस तरह ही भाग कर आ रहे हैं ,और उनके शस्त्रों की ,आवाज से उसे यह भी समझ आ जाता है कि, राजा के सैनिक ही हैं,

 

 

 

 

 

 

 

हवलदार ,”बाबाजी, लगता है, राजा के सैनिक इस तरह ही आ रहे हैं ,मुझे उनके आने का शोर सुनाई दे रहा है,” और बेहद घबरा जाता है,

 

 

 

 

 

तांत्रिक चित्र देवा ,जो मंत्रों में उलझा हुआ था ,हवलदार की बात सुनकर, सुरा की तरफ तिरछी नजरों से देखता है, और उसे आंखों ही आंखों में ,इशारा करता है, जाकर उन्हें रोके,

 

 

 

 

 

सुरा ,”जो आज्ञा गुरुदेव, मैं अभी उन्हें ठिकाने लगा देता हूं ,”

 

 

 

 

 

और फिर, उठकर दरवाजे पर चले जाता है ,और मंत्रों का उच्चारण शुरू कर देता है ,उसके हाथों से ,निकली ऊर्जा से वहां रखे ,तलवारे अपने आप हवा में घूमने लगती हैं ,और फिर वह उन्हें तहखाने की तरफ ,आने वाले रास्ते की तरफ भेज देता है,

 

 

 

 

 

सेनापति ,के साथ तेजी से ,उस तरफ भाग कर आ रही, ताकतवर रक्षक सैनिक, उन तलवारों को ,अपनी तरफ उड़कर आता देख कर ,हैरान हो गए थे ,और फिर अगले ही पल ,उनकी भी तलवारें उन तलवारों से भिड़ जाती हैं,

 

 

 

 

 

 

 

सूरा ,की मंत्र शक्ति से , ऐसा लग रहा था कि, तलवारे कोई इंसान चला रहे हैं ,और अब राजा के रक्षक सैनिकों को, ऐसा लग रहा था, जैसे कि वह अदृश्य लोगों से युद्ध लड़ रहे हो,

 

 

 

 

 

 

 

तलवारों, का शोर लगातार बढ़ता जा रहा था, पर राजा के रक्षक सैनिकों को, मारने के लिए ,कोई इंसान नजर नहीं आ रहे थे, और अब वे पीछे हटने लगे थे ,अपना बचाव करते हुए ,क्योंकि उन तलवारों को तो, कोई फर्क नहीं पड़ रहा था ,पर राजा के सैनिक ,अब घायल होने लगे थे,

 

 

 

 

 

 

 

सेनापति,” यह तो तंत्र जाल का असर है ,हम इनसे नहीं लड़ पाएंगे, हमें कोई दूसरा रास्ता अपनाना पड़ेगा, राजकुमारी शिल्पा की चोटी हासिल करने का ,चलो यहां से, बाहर निकलो ,”और फिर से भी पीछे हट जाते हैं,

 

 

 

क्रमशः

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